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भगवान सुपार्श्वनाथ की जन्म स्थली : भदैनी तीर्थ

भगवान सुपार्श्वनाथ का इतिहास

महारानी नन्दा
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भदैनी जैन तीर्थ

आज से हजारों वर्ष पूर्व काशी की इस पुण्य धरा पर सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ भगवान का जन्म गंगा नदी के किनारे वर्तमान भदैनी स्थित जैन घाट पर हुआ था। वर्तमान में यहां पर दो दिगंबर एवं एक श्वेतांबर परंपरा के कुल तीन मंदिर गंगा नदी के किनारे स्थित हैं। मंदिर एवं उसमें स्थित अत्यंत मनोरम प्रतिमाएं मूलनायक सुपार्श्वनाथ भगवान के साथ विराजमान हैं। भदैनी स्थित जैन मंदिर का निर्माण सन्‍ 1855-56 ई. में श्री प्रभुदास जैन द्वारा नागर शैली में कराया गया था। यहीं पर जैन धर्म की शिक्षा के लिए 1905 में स्थापित स्यादवाद महाविद्यालय भी है।


तीर्थंकर भगवान सुपार्श्वनाथ का जीवन परिचय

भगवान सुपार्श्वनाथ वर्तमान अवसर्पिणी काल के सातवें तीर्थंकर थे। इनका जन्म वाराणसी के इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार में हुआ था। बनारस नाम की नगरी थी उसमें सुप्रतिष्ठित महाराज राज्य करते थे। उनकी पृथ्वीषेणा रानी के गर्भ में भगवान भाद्रपद शुक्ल षष्ठी के दिन आ गये। अनन्तर ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी के दिन उस अहमिन्द्र पुत्र को उत्पन्न किया। इन्द्र ने जन्मोत्सव के बाद सुपार्श्वनाथ नाम रखा।

छद्मस्थ अवस्था के नौ वर्ष व्यतीत कर फाल्गुन कृष्ण षष्ठी के दिन केवलज्ञान प्राप्त किया।

भगवान श्रेयांसनाथ का निर्वाण

धर्म का उपदेश देते हुए सम्मेदशिखर पर पहुँचकर एक माह तक योग का निरोध करके श्रावण शुक्ला पूर्णिमा के दिन भगवान श्रेयांसनाथ नि:श्रेयसपद को प्राप्त हो गये।



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