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भगवान चंद्रप्रभु की जन्म स्थली : चंद्रपुरी / चंद्रावती तीर्थ

भगवान चंद्रप्रभु का इतिहास

Chandravti
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चंद्रपुरी / चंद्रावती तीर्थ

जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर भगवान चंदप्रभ का जन्म भगवान सुपार्श्वनाथ के पश्चात्‍ काशी की पवित्र भूमि पर हुआ। दोनों के मध्य कई हजार वर्षों का अंतर था। चंदप्रभ भगवान का जन्म पौष कृष्ण एकादशी को चंद्रपुरी में इक्ष्वाकुवंश के महाराजा महासेन तथा महारानी लक्ष्मणा के यहां हुआ। वर्तमान में यह जन्म स्थली वाराणसी से लगभग 25 किलोमीटर दूर वाराणसी – गाजीपुर मार्ग पर स्थित है। यह स्थान वर्तमान में चंद्रावती के नाम से विख्यात है। गंगा किनारे स्थित यह क्षेत्र एक छोटे से गांव के रूप में है जहां पर दो दिगम्बर मंदिर और एक श्वेतांबर मंदिर है। इसके निकट में एक प्राचीन अल्प उपयोगी जैन धर्मशाला भी है।


  • विगत वर्ष चंद्रपुरी तीर्थ पर आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज के सानिध्य में पंच- कल्याणक महोत्सव सम्पन्न हुआ। जिसमें अनेक नई भव्य रत्नों की प्रतिमायें, नई चौबीसी तथा भगवान चंद्रप्रभ की विशाल प्रतिमा स्थापित हुई।

भगवान चंद्रप्रभु का जीवन परिचय

श्री चंद्रप्रभु(Chandrapabhu) भगवान जैन धर्म के २४ तीर्थकरो में से वर्तमान काल के आठवें तीर्थंकर है। श्री चंदा प्रभु भगवान का गर्भ कल्याणक चैत्र कृष्णा पंचमी को ज्येष्ठा नक्षत्र में, चंद्र प्रभु का जन्म चन्द्रपुर नगर के राजपरिवार में पौष कृष्णा ग्यारस को अनुराधा नक्षत्र में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री महासेन राजा और माता का नाम श्रीमती लक्ष्मण देवी था। चंद्र प्रभु का चिह्न चन्द्रमा है। श्री चंद्र प्रभु भगवान का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ। श्री चंद्र प्रभु भगवान के शरीर का वर्ण चन्द्रमा के समान श्वेत है, श्री चंद्र प्रभु भगवान के शरीर की ऊंचाई एक सौ पचास धनुष। श्री चंद्र प्रभु भगवान की आयु दश लाख वर्ष पूर्व की थी। श्री चंद्र प्रभु भगवान का कुमार काल ढाई लाख वर्ष पूर्व का तथा श्री चंदा प्रभु भगवान का राज्य काल साढ़े छह लाख वर्ष पूर्व 24 पूर्वांग। श्री चंद्र प्रभु भगवान के वैराग्य का कारण अध्रुवादि भावनाओं के चिंतवन करने से हुआ।श्री चंदा प्रभु भगवान का दीक्षा कल्याणक पौष कृष्णा गयारस को हुआ। श्री चंद्र प्रभु भगवान की पूर्व पर्याय का नाम राजा श्री श्रीषेण था। श्री श्रीषेण सुगंध देश के राजा थे। श्री श्रीषेण श्रीपुर नाम नगर के राजा थे पूर्व पूष्करार्ध द्वीप में सीता नदी के उत्तर तट पर सुगंधा देश के आर्यखंड में श्रीपुर नगर है।

तीन माह का छद्मस्थ काल व्यतीत कर भगवान दीक्षावन में नागवृक्ष के नीचे फाल्गुन कृष्ण सप्तमी के दिन केवलज्ञान को प्राप्त हो गये।

भगवान चंद्रप्रभु का निर्वाण

ये चन्द्रप्रभ भगवान समस्त आर्य देशों में विहार कर धर्म की प्रवृत्ति करते हुए सम्मेदशिखर पर पहुँचे। एक माह तक प्रतिमायोग से स्थित होकर फाल्गुन शुक्ला सप्तमी के दिन ज्येष्ठा नक्षत्र में सायंकाल के समय शुक्लध्यान के द्वारा सर्वकर्म को नष्ट कर सिद्धपद को प्राप्त हो गये।



चंद्रावती तीर्थ पर सम्पर्क हेतु :
श्री मक्खन लाल जी जैन : 88960 20442
श्री पंकज जैन : 97943 32780