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श्री अजितनाथ दिगंबर जैन मंदिर , खोजवां वाराणसी

भगवान अजितनाथ का इतिहास

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भगवान अजितनाथ

भगवान अजितनाथ जैन धर्म के २४ तीर्थकरो में से वर्तमान अवसर्पिणी काल के द्वितीय तीर्थंकर है। अजितनाथ का जन्म अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय राजपरिवार में माघ के शुक्ल पक्ष की अष्टमी में हुआ था। इनके पिता का नाम जितशत्रु और माता का नाम विजया था। अजितनाथ का चिह्न हाथी था। भगवान अजिताथ की कुल आयु 72 लाख पूर्व की थी।

बारह वर्ष की छद्मस्थ अवस्था के बाद पौष शुक्ल एकादशी के दिन सायं के समय रोहिणी नक्षत्र में सहेतुक वन में सप्तपर्ण वृक्ष के नीचे केवलज्ञान को प्राप्त कर सर्वज्ञ हो गये। इनके समवसरण में सिंहसेन आदि नब्बे गणधर थे। एक लाख मुनि, प्रकुब्जा आदि तीन लाख बीस हजार आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक, पाँच लाख श्राविकाएँ और असंख्यात देव-देवियाँ थीं। भगवान बहुत काल तक आर्य खंड में विहार करके भव्यों को उपदेश देकर अंत में सम्मेदाचल पर पहुँचे और एक मास का योग निरोध कर चैत्र शुक्ला पंचमी के दिन प्रात:काल के समय सर्वकर्म से छूटकर सिद्धपद प्राप्त किया।

भगवान अजितनाथ जी का मोक्ष कल्याणक चैत्र सुदी पंचमी के दिन सम्मेद शिखरजी में हुआ था । प्रभु खडगासन कि मुद्रा में ध्यान लगाये मासखमण का उपवास कर अपने अष्टकर्मो का क्षय कर सिद्ध कहालाये और निर्वाण पा गये।