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भगवान श्रेयांसनाथ की जन्म स्थली : सारनाथ तीर्थ

भगवान श्रेयांसनाथ का इतिहास

महारानी नन्दा
Sarnath
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सारनाथ जैन तीर्थ

जैन धर्म के 11 वें तीर्थंकर भगवान श्रेयांसनाथ जी का जन्म सिंहपुरी / सारनाथ में इक्ष्वाकु वंश के महाराजा विष्णु और महारानी नंदा के यहां फाल्गुन कृष्ण एकादशी को हुआ था। सारनाथ में भगवान श्रेयांसनाथ जी के चार कल्याणक हुए तथा अंत में श्री सम्मेद शिखर जी से मोक्ष प्राप्त हुआ। सारनाथ में दिगम्बर और श्वेताम्बर आम्नाय के दो भव्य जैन मंदिर है। दिगम्बर जैन मंदिर का निर्माण सन्‍ 1824 ई. में हुआ था। दिगम्बर जैन समाज काशी के सभी सदस्यगण एवं धर्मावलंवी प्रत्येक वर्ष सारनाथ जाकर भगवान का जन्म महोत्सव भव्यता से मनाते हैं।


  • सारनाथ जैन तीर्थ , जिसे श्रेयांशनाथ जैन तीर्थ भी कहा जाता है, सारनाथ में जैन मंदिरों का एक समूह है । वे धमेक स्तूप के पास स्थित हैं ।
  • माना जाता है कि सिंहपुरी, जो वर्तमान में सिंहपुरी गांव है, 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्मस्थान है । यह स्थान श्रेयांसनाथ के पाँच कल्याणकों में से चार का भी प्रतीक है: च्यवन (तीर्थंकर का अपनी माँ के गर्भ में प्रवेश), जन्म , दीक्षा (त्याग) और केवल ज्ञान (सर्वज्ञता)। महावीर ने सारनाथ और वाराणसी में भी उपदेश दिए ।
  • मंदिर का निर्माण 1824 ई. में श्रेयांसनाथ के जन्मस्थान की स्मृति में किया गया था। मंदिर के मूलनायक (प्राथमिक देवता) श्रेयांसनाथ की एक बड़ी छवि और पैरों के निशान हैं। [ 5 ] मंदिर में महावीर के जीवन को दर्शाते आकर्षक भित्तिचित्र भी हैं।.

भगवान श्रेयांसनाथ का जीवन परिचय

श्रेयांसनाथ, जैन धर्म में वर्तमान अवसर्पिणी काल के ११वें तीर्थंकर थे। श्रेयांसनाथ जी के पिता का नाम विष्णु और माता का वेणुदेवी था। उनका जन्मस्थान सिंहपुर(वाराणसी) और निर्वाणस्थान संमेदशिखर माना जाता है। इनका चिन्ह गैंडा है। श्रेयांसनाथ के काल में जैन धर्म के अनुसार अचल नाम के प्रथम बलदेव, त्रिपृष्ठ नाम के प्रथम वासुदेव और अश्वग्रीव नाम के प्रथम प्रतिवासुदेव का जन्म हुआ। ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और तीर्थंकर प्रकृति का बंध करके समाधिमरणपूर्वक अच्युत स्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान में अच्युत नाम का इन्द्र हुआ।

छद्मस्थ अवस्था के दो वर्ष बीत जाने पर मनोहर नामक उद्यान में तुंबुरू वृक्ष के नीचे माघ कृष्णा अमावस्या के दिन सायंकाल के समय भगवान को केवलज्ञान प्रगट हो गया।

भगवान श्रेयांसनाथ का निर्वाण

धर्म का उपदेश देते हुए सम्मेदशिखर पर पहुँचकर एक माह तक योग का निरोध करके श्रावण शुक्ला पूर्णिमा के दिन भगवान श्रेयांसनाथ नि:श्रेयसपद को प्राप्त हो गये।



सारनाथ तीर्थ पर सम्पर्क हेतु :
श्री दिलीप जैन (98079 54934)